यदि आप की कुंडली में शंखयोग प्रभावी है तो पा सकते है राजयोग हो सकते है धनवान
यदि आप की कुंडली में शंखयोग प्रभावी है तो पा सकते है राजयोग हो सकते है धनवान |
यदि आप की कुंडली में शंखयोग प्रभावी है तो पा सकते है राजयोग हो सकते है धनवान
जन्मपत्रिका में निर्मित शंखयोग का प्रभाव
शंखयोग जब जन्मपत्रिका में निर्मित होता है, तब यह संकेत देता है कि जातक किसी संस्थान, समूह का मुख्य पद पाकर अमरता प्राप्त करेगा। वह बिना किसी पद के भी राजा के समान ही जीवन व्यतीत करता है। वह धर्मात्मा, धनवान् और राजयोगी होता है, लेकिन इस आलेख में हम शंखयोग के विभिन्न मतों और परिभाषाओं के बारे में समीक्षा करेंगे कि क्या विभिन्न मत से बने शंखयोग द्वारा फलों में भी विभिन्नता होती है या नहीं?
फलदीपिका में शंखयोग का वर्णन
फलदीपिका (6/37) में बताया गया है कि यदि केन्द्र एवं त्रिकोण के स्वामी एक भाव, एक राशि में संयुक्त रूप से स्थित हों, तो शंखयोग निर्मित होता है, जिसके प्रभाव से जातक राजतुल्य, गणमान्य व्यक्ति हो जाता है। उसे भरी सभा में अलग से ही ऐसे पहचाना जा सकता है, जैसे सियारों के झुण्ड में शेर को पहचाना जा सकता है।
पारिजात में शंखयोग का वर्णन
वहीं जातक पारिजात में कहा गया है कि पंचमेश और षष्ठेश एक-दूसरे से केन्द्र में स्थित हों और लग्नेश बलवान् हो, तो शंखयोग निर्मित होता है। इस योग में जातक में पराक्रम की अधिकता होती है। वह पक्का जंगबाज होता है, यानि ऐसा व्यक्ति जो अपने निर्णय के लिए अपनी जान तक दे सके ऐसा योद्धा जो अपने आप में ही सेना और सेनानायक का प्रभाव रहता है वहीं आगे बताया गया है कि लग्नेश और दशमेश किसी चर राशि में स्थित हो नवमेश बलवान हो तो भी शंख योग निर्मित होता है इस योग में जातक के भोगों की इच्छा अधिक होती है जातक दयालु अधिक होता है
यदि आप की कुंडली में शंखयोग प्रभावी है तो पा सकते है राजयोग हो सकते है धनवान |
जन्म दिनांक: 28-8-1977
जन्म समय : 21:33
जन्म स्थान : Jhajhar (Rajasthan)
उदहारण कुंडली में पंचमेश सूर्य और 6 ठे स्थान का स्वामी बुध एक साथ पंचम भाव में स्थित लगभग होने से एक-दूसरे से केन्द्र में स्थित हैं और लग्नेश मंगल बलवान् है, अतः शंखयोग निर्मित हो रहा है।
दूसरी ओर त्रिकोणेश गुरु और और चतुर्थ केन्द्रेश मंगल (लग्न का स्वामी भी केन्द्रपति ही माना जाता है) शुभ ग्रह बुध की राशि में संयुक्त रूप से स्थित है। और नवमेश गुरु बलवान् स्थिति में भी है।
अतः जन्मचक्र में दो तरह से शंखयोग निर्मित हुआ। जातक एक संस्था में प्रमुख पद पर है। जातक से उसके अधीन कर्मचारी इतना खौफ प्रभावी खाते हैं कि कोई भी अनैतिक कार्य करने के बारे में सोच भी नहीं सकता। जातक कई बार आन्दोलनों में स्वयं ही हैं। इस बात करने अकेले ही आ जाता और मामलों को हल कर देता है।
उदाहरण कुण्डली-2
यदि आप की कुंडली में शंखयोग प्रभावी है तो पा सकते है राजयोग हो सकते है धनवान |
जन्म दिनांक : 28 नवम्बर, 1969
समय 21:52
जन्म स्थान : Panipat (Hariyana)
उदाहरण कुण्डली-2 में भी षष्ठेश गुरु और पंचमेश मंगल एक-दूसरे से केन्द्र में स्थित हैं और लग्नेश चन्द्रमा बलवान् है। इसी कारण शंखयोग निर्मित हो रहा है। वहीं केन्द्रेश (चतुर्थ भाव का स्वामी) शुक्र और त्रिकोणेश गुरु शुभ ग्रह की राशि तुला में संयुक्त रूप से स्थित है और नवमेश गुरु बलवान् है, जिस कारण शंखयोग निर्मित हो रहा है।
इस जातक में भी उपर्युक्त उदाहरण कुण्डली-1 की तरह ही गुणधर्म मिलते हैं। यह भी पक्का जंगबाज है, जो कभी यह परवाह नहीं करता कि उसके सिपाही इसके साथ हैं या नहीं, अकेले ही अपने मकसद को अंजाम दे देता है। बृहत्पाराशर होराशास्त्र में भी लगभग उपर्युक्त परिभाषा ही शंखयोग की मिलती है। वहीं होरासार (पृथुयशा , द्वारा लिखित ग्रन्थ) में बताया गया है कि सारे ग्रह नवम, एकादश, प्रथम और चतुर्थ भावों में स्थित हों, तो भी साहस, तेज, बहुमुखी प्रतिभाओं से शुभ ग्रह युक्त राजयोग प्रदाता शंखयोग निर्मित स्थित होता है।
अनुभव में भी आता है कि उपर्युक्त नियम एक ही जन्मचक्र में एक से तरह से अधिक भी हो सकते हैं या किन्हीं दो ग्रन्थकारों के नियम एक ही जन्मचक्र में तक से लागू हो सकते हैं। ऐसे में योग अधिक प्रभावी होगा अथवा नहीं, यह भी देखना होगा। इसी को आधार मानकर हम उदाहरण कुण्डली-1 का विश्लेषण करते इस जन्मपत्रिका में दो ग्रन्थकारों के नियम लागू होते हैं, जिसमें पंचमेश और षष्ठेश एक-दूसरे से केन्द्र में भी हैं और केन्द्र तथा त्रिकोण के स्वामी शुभ राशि में एक साथ स्थित हैं।
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