पितृपक्ष में ऐसा संयोग 16 साल बाद : 2022 श्राद्ध की तिथियां श्राद्ध का महत्व कितने प्रकार के होते हैं पितृ व पितृ दोष के लक्ष्ण
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पितृपक्ष में ऐसा संयोग 16 साल बाद : 2022 श्राद्ध की तिथियां श्राद्ध का महत्व |
पितृपक्ष में ऐसा संयोग 16 साल बाद
श्राद्ध पक्ष शनिवार, 10 सितंबर से शुरू होगा और रविवार, 25 सितंबर को इसका समापन होगा. इस साल श्राद्ध पक्ष 15 दिन की बजाए 16 दिन के रहने वाले हैं. पितृपक्ष में ऐसा संयोग 16 साल बाद आया है. इससे पहले ऐसा संयोग साल 2011 में बना था. इस बीच 17 सितंबर को कोई श्राद्ध कर्म नहीं किए जाएंगे.
श्राद्ध का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इस दौरान हमारे पूर्वज हमें आशीर्वाद देने आते हैं और उनकी कृपा से जीवन में चल रही तमाम समस्याएं खत्म हो जाती हैं. पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म के अलावा गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना भी बहुत फलदायी माना जाता है.
श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक कथा
जब महाभारत युद्ध में महान दाता कर्ण की मृत्यु हुई, तो उसकी आत्मा स्वर्ग चली गई, जहां उसे भोजन के रूप में सोना और रत्न चढ़ाए गए। हालांकि, कर्ण को खाने के लिए वास्तविक भोजन की आवश्यकता थी और स्वर्ग के स्वामी इंद्र से भोजन के रूप में सोने परोसने का कारण पूछा। इंद्र ने कर्ण से कहा कि उसने जीवन भर सोना दान किया था, लेकिन श्राद्ध में अपने पूर्वजों को कभी भोजन नहीं दिया था। कर्ण ने कहा कि चूंकि वह अपने पूर्वजों से अनभिज्ञ था, इसलिए उसने कभी भी उसकी याद में कुछ भी दान नहीं किया। संशोधन करने के लिए, कर्ण को 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर लौटने की अनुमति दी गई, ताकि वह श्राद्ध कर सके और उनकी स्मृति में भोजन और पानी का दान कर सके। इस काल को अब पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है।
कितने प्रकार के होते हैं पितर ?
शास्त्रों के अनुसार चन्द्रमा के ऊपर एक अन्य लोक है जो पितर लोक माना जाता है.पुराणों के अनुसार पितरों को दो भागों में बांटा गया है. एक है दिव्य पितर और दूसरे मनुष्य पितर. दिव्य पितर मनुष्य और जीवों के कर्मों के आधार पर उनका न्याय करते हैं. अर्यमा को पितरों का प्रधान मानते हैं वहीं इनके न्यायाधीश यमराज हैं.
पितरों को कैसे मिलता है भोजन ?
पुराण में बताया गया है कि पितर गंध और रस तत्व से तृप्त होते हैं. जब कि शांति के लिए जातक जब जलते हुए उपले (गाय के गोबर से बने कंडे) में गुड़, घी और अन्न अर्पित करते हैं तो इससे गंध निर्मित होती है. इसी गंध के जरिए वह भोजन ग्रहण करते हैं.
पितृ पक्ष में पितरों को जल कैसे दें ?
पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं. कुश लेकर हाथ जोड़ें और जिनका तर्पण कर रहे हैं उनका ध्यान कर इस मंत्र का जाप करें ‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’ अब अंगूठे की मदद से धीरे-धीरे पृथ्वी पर 5-7 या 11 बार चढ़ाएं. मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से वे तृप्त होते हैं.
पुण्यतिथि पर क्या दान करें ?
पितृ पक्ष में दान करने से पितरों को संतुष्टि मिलती है. पूर्वजों के निमित्त श्राद्ग के बाद काले तिल, नमक, गेंहू, चावल, गाय का दान, सोना, वस्त्र, चांदी का दान उत्तम फलदायी माना गया है.
पितृ दोष के लक्ष्ण ?
गृहक्लेश, संतान से संबंधित परेशानियां, विवाह में बाधा, आकस्मिक दुर्घटना, नौकरी या व्यापार में बाधा, खराब सेहत आदि तमाम तरह के दुख पित दोष के लक्ष्ण हैं.
मृत्यु की तिथि पर ही करें श्राद्ध
धार्मिक मान्यता के अनुसार हिंदू संवत्सर की जिस तिथि के दिन किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, हर साल पितृ पक्ष के दौरान उसी तिथि पर मृत पूर्वजों के नाम पर श्राद्ध करना चाहिए। ऊंगली में कुशा धारणकर तिल, जौ, मिश्रित जल से दोनों हाथों की अंजुली में जल लेकर पूर्वज को याद करते हुए आकाश की ओर जल अर्पित करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
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पितृपक्ष में ऐसा संयोग 16 साल बाद : 2022 श्राद्ध की तिथियां श्राद्ध का महत्व |
तीन ऋण महत्वपूर्ण
शास्त्रों में मनुष्यों के लिए तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं। देवऋण, ऋषिऋण तथा पितृऋण।
प्रतिपदा का महालय श्राद्ध (10 सितम्बर, शनिवार)
यह पार्वण श्राद्ध है। क्योंकि सभी पार्वण-महालय श्राद्ध अपराहण व्यापिनी तिथि में किए जाते हैं। इस वर्ष आश्विन कृष्ण प्रतिपदा 11 सितम्बर, 2022 ई. को अपराहण प्रारम्भ होने से पूर्व ही समाप्त हो रही है, जिससे यह इसदिन अपराह्ण-व्यापिनी नहीं है। यह तिथि 10 सितम्बर, 2022 ई. को ही अपराह्ण-व्यापिनी है। अतः इस तिथि (प्रतिपदा) का यह श्राद्ध 10 सितम्बर, 2022 ई. (पूर्णिमाश्राद्ध वाले दिन) ही लिखा गया है। प्रतिपदा तिथि 15 घं--29 मिं. से 16 घं-06 मिं तक अपराह्ण-व्यापिनी होगी।
तिथि अनुसार श्राद्ध
पितृ पक्ष 2022 श्राद्ध की तिथियां-
10 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध (शुक्ल पूर्णिमा), प्रतिपदा श्राद्ध (कृष्ण प्रतिपदा)
11 सितंबर- आश्निव, कृष्ण द्वितीया
12 सितंबर- आश्विन, कृष्ण तृतीया
13 सितंबर- आश्विन, कृष्ण चतुर्थी
14 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पंचमी
15 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पष्ठी
16 सितंबर- आश्विन,कृष्ण सप्तमी
18 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अष्टमी
19 सितंबर- आश्विन,कृष्ण नवमी
20 सितंबर- आश्विन,कृष्ण दशमी
21 सितंबर- आश्विन,कृष्ण एकादशी
22 सितंबर- आश्विन,कृष्ण द्वादशी
23 सितंबर- आश्विन,कृष्ण त्रयोदशी
24 सितंबर- आश्विन,कृष्ण चतुर्दशी
25 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अमावस्या
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