G-B7QRPMNW6J Pitra Stotra - पितृस्तोत्र मार्कंडेय पुराण में वर्णित चमत्कारी पितृ स्तोत्र के पाठ से रोग - धन - पुत्र-पौत्र आदि की इच्छा पूर्ण होती है
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Pitra Stotra - पितृस्तोत्र मार्कंडेय पुराण में वर्णित चमत्कारी पितृ स्तोत्र के पाठ से रोग - धन - पुत्र-पौत्र आदि की इच्छा पूर्ण होती है

Jyotish With AkshayG

पितृस्तोत्र - Pitru Stotra मार्कंडेय पुराण में वर्णित चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से पितृ प्रसन्न होते है और रोग , धन और पुत्र-पौत्र आदि की इच्छा पूर्ण भी होती है ........................

Pitru Stotra - पितृस्तोत्र मार्कंडेय पुराण में वर्णित चमत्कारी पितृ स्तोत्र
Pitru Stotra - पितृस्तोत्र मार्कंडेय पुराण में वर्णित चमत्कारी पितृ स्तोत्र के पाठ से रोग - धन - पुत्र-पौत्र आदि की इच्छा पूर्ण होती है 


पितृस्तोत्र - Pitrustotra

स्तोत्रका माहात्म्य............................................................

पितृ बोले- जो मनुष्य इस स्तोत्रसे भक्तिपूर्वक हमारी स्तुति करेगा, उसके ऊपर सन्तुष्ट होकर हमलोग उसे मनोवांछित भोग तथा उत्तम आत्मज्ञान प्रदान करेंगे जो नीरोग शरीर, धन और पुत्र-पौत्र आदिको इच्छा करता हो, वह सदा इस स्तोत्रसे हमलोगोंकी स्तुति करे। यह स्तोत्र हमलोगोंको प्रसन्नता बढ़ानेवाला है।

जिस घरमें यह स्तोत्र सदा लिखकर रखा जाता है, वहाँ श्राद्ध करनेपर हमारी निश्चय ही उपस्थिति होती है अतः श्राद्धमें भोजन करनेवाले ब्राह्मणोंके सामने यह स्तोत्र अवश्य सुनाना चाहिये क्योंकि यह हमारी पुष्टि करनेवाला है (मार्कण्डेयपुराण, रौव्यमन्वन्तर १७)

मार्कंडेय पुराण (94/3 - 13 ) में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से पितृ प्रसन्न होते है।

पितृ को प्रसन्न करनेवाला स्तोत्र............................................

रुचिरुवाच

अर्चितानाममूर्त्तानां पितॄणां दीप्ततेजसाम्। नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥ इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा। सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥ मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा। तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ॥ नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्नयोर्नभसस्तथा । द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ देवर्षीणां जनितूंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृताञ्जलिः ॥ प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु । स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥ सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्त्तिधरांस्तथा । नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥ अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितॄनहम्। अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः ॥ ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः । जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः ॥ तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः । नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ॥

1 जो श्राद्ध भोजन करनेवाले श्रेष्ठ ब्राह्मणोंक सामने खड़े होकर भक्तिपूर्वक इस स्तोत्रका पाठ करेगा, उसके यहाँ स्तोत्र श्रवणके प्रेमसे हम निश्चय ही उपस्थित होंगे और हमारे लिये किया हुआ श्राद्ध भी निःसन्देह अक्षय होगा चाहे श्रोत्रिय ब्राह्मणसे रहित श्राद्ध हो, चाहे वह किसी दोपसे दूषित हो गया हो अथवा अन्यायोपार्जित धनसे किया गया हो अथवा श्राद्धके लिये अयोग्य दूषित सामग्रियोंसे उसका अनुष्ठान हुआ हो, अनुचित समय या अयोग्य देशमें हुआ हो या उसमें विधिका उल्लंघन किया गया हो अथवा लोगोंने बिना श्रद्धाके या दिखावे के लिये किया हो, तो भी वह श्राद्ध इस स्तोत्रके पाठसे हमारी तृप्ति करनेमें समर्थ होता है। हमें सुख देनेवाला यह स्तोत्र जहाँ श्राद्धमें पढ़ा जाता है, वहाँ हमलोगोंको बारह वर्षोंतक बनी रहनेवाली तुम प्राप्त होती है।

पितृपक्ष में 15 दिन यह स्तोत्र रोज पढे पितृ देवता को प्रसन्न करें ............................

मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति 'पितृस्तोत्र' कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है।

पितृ स्तोत्र के अलावा श्राद्ध के समय " पितृमूक्त" तथा "रक्षोघ्न सूक्त" का पाठ भी किया जा सकता है। इन पाठों की स्तुति से भी पितरों का आशीर्वाद सदैव व्यक्ति पर बना रहता है।

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