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एक अकेला गुलिक पूरी कुंडली को बिगाड़ कर रख देता है |
गुलिक
गुलिक को मंदि भी कहा जाता है,एक दिन के आठ भाग करने पर सात भाव तो सात ग्रहों के माने जाते है और आठवां भाग गुलिक का माना जाता है। इसकी गणना करने के लिये वारेश को ध्यान में रखना पडता है,और वारेश से ही गणना की जाती है। जैसे रविवार को गुलिक की गणना करनी है,और दिन के आठ भाग किये तो रवि सोम मंगल आदि के बाद शनि का सातवां भाग होगा,जैसे दिन का मान ३२ घडी था तो एक भाग चार घडी का हुआ और शनि का भाग समाप्त होता है उस समय गुलिक का भाग शुरु हो जाता है।
गुलिक के बारे में अन्य विचार
गुलिक जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है वह कितना ही कारक जीवन के लिये होता उसे बेकार कर देता है। ग्रह के कारकत्व को समाप्त करने में गुलिक की मुख्य भूमिका होती है।
सूर्य के साथ मिलने से पिता की अल्पायु और पुत्र की बरबादी का कारण होता है आंखों में रोग देता है और अन्धत्व के कारणों मे ले जाता है। चन्द्रमा के साथ होने पर वह माता का सुख नही देता है और पानी वाले रोग तथा बेकार के छली लोगों से छला जाता है। माता भी अल्पायु होती है। मंगल के साथ होने से जातक को भाइयों का सुख नही मिलता है और भाई ही उसकी सम्पत्ति का विनास कर देते है,भाई भी अल्पायु के होते हैं। बुध के साथ होने से जातक को दौरे पडने की बीमारी देता है और पागल पन की बीमारी भी देता है। जातक लगातार बोलने का आदी होता है,और उसकी बडे भाई की पत्नी या पति के बडे भाई से सम्बन्ध बना होता है जिससे अवैद्य सन्तान का पैदा होना और पितृ दोष की उत्पत्ति का कारण भी माना जाता है। गुरु के साथ धर्म से अलग होना शिक्षा का पूरा नही होना,शुक्र के साथ होना बहु स्त्री या बहु पुरुष का भोगी,अधिकतर नीच स्त्रियों का समागम करना या नीच पुरुषों के साथ कामसुख की प्राप्ति करना माना जाता है,गुलिक का शनि के साथ होने से अधिकतर कोढ होना देखा गया है,राहु के साथ होने से जातक को खून की बीमारी और जातक की मौत जहर खाने से होती है। गुलिक का केतु के साथ होना जातक को अग्नि सम्बन्धी कारकों से मृत्यु को सूचित करता है। गुलिक अगर त्याज्य काल में हो तो व्यक्ति राजा के घर में भी पैदा हो फ़िर भी वह दरिद्री होता है।
गुलिक के विभिन्न भावों में फ़ल
गुलिक के अलग अलग भावों में अलग अलग फ़ल सामने आते है,जातक के जन्म के समय गुलिक का प्रभाव इस प्रकार से देखना चाहिये।
पहले भाव में गुलिक का फ़ल
पहले भाव में गुलिक की उपस्थिति में जातक क्रूर स्वभाव का होता है उसके अन्दर दया नही होती है,उसकी आदत के अन्दर चोरी करना छुपाकर बात करना और कठोर भाषा का बोलना और मंद बुद्धि का फ़ल देता है। सन्तान सुख उसे नही के बराबर ही मिलता है या तो सन्तान होती ही नही है और होती भी है तो बुढापे में छीछालेदर करने वाली होती है,ऐसा जातक धर्म कर्म को नही मानता है और जितना हो सकता है भौतिकता पर अपना बल देता है।
दूसरे भाव में गुलिक का फ़ल
दूसरे भाव वाला जातक झूठ बोलने की कला में माहिर होता है,उसे शान्ति कभी अच्छी नही लगती है केवल कलह करने से उसे सन्तोष मिलता है,धन की भावना बिलकुल नही होती है केवल किसका मुफ़्त में मिले और उसका प्रयोग करने के बाद फ़िर से कोई दूसरा शिकार तलासना उसका काम होता है। ऐसा जातक कभी भी एक स्थान पर नही बैठता है हमेशा दर दर का भटकाव उसके जीवन में मिलता है। इस प्रकार के जातकों की जुबान का कोई भरोसा नही होता है,वे आज कुछ बोलते है और कल क्या बोलने लगें कोई भरोसा नही होता है।
तीसरे भाव में गुलिक का फ़ल
तीसरे भाव के गुलिक वाला जातक क्रोधी होता है,उसे घमंड कूट कूट कर भरा होता है,इसके अलावा वह हमेशा लालच करने वाला होता है।किसी सभा समाज से वह नफ़रत करता है,एकान्त मे रहना और शराब कबाब के भोजन करना उसकी शिफ़्त होती है। अक्सर इस प्रकार के जातक जुआरी भी होते है।
चौथे भाव में गुलिक का फ़ल
चौथे भाव के गुलिक वाला जातक हमेशा अपने घर वालों से शत्रुता किये रहता है उसे अपने ही भाई बहिनो से दुश्मनी और क्षोभ रहता है। अक्सर इस गुलिक वाले जातक को कभी भी वाहन का सुख नही मिलता है।
पांचवे भाव के गुलिक का फ़ल
पांचवे भाव के गुलिक वाले जातक को संतान का सुख नही मिल पाता है,और अक्सर उनकी पत्नी और पत्नी के परिवार वालों से सामजस्य नही बैठ पाता है। अपनी ही संतान के द्वारा वह अपमानित होता है और अपनी ही सन्तान उसकी मौत का कारण बनती है।
छठे भाव के गुलिक का फ़ल
जातक के अन्दर काम करने में आलस होता है वह बैठा रह सकता है लेकिन कोई भी दैनिक काम करने के लिये उसकी आदत नही होती है,यहाँ तक कि वह रोजाना मलमूत्र त्याग और रोजाना के नहाने धोने के कार्यों से भी दूर रहता है। इसके साथ ही शमशान सिद्धि और भूत प्रेत वाली बातों में अपना लगाव भी रखता है। अक्सर इस प्रकार के जातकों का नाम उसके पुत्र करते है और वे आगे से आगे बढने वाले होते हैं।
सातवें भाव में गुलिक का फ़ल
पति या पत्नी में आपस में शत्रुता और कभी भी एक दूसरे के विचारों का नही मिलना,इसके साथ ही अगर इस प्रकार का जातक किसी के साथ भी काम करता है तो साझेदारी की पूरी की पूरी हिस्सेदारी वह चालाकी से खा जाने वाला होता है। हर किसी से उसे लडाई करने में मजा आता है और जहां भी लडाई होती है वह वहां जाकर अपना भाव जरूर प्रदर्शित करता है। एक से अधिक जीवन साथी बनाना उसकी आदत में होता है।
आठवें भाव में गुलिक का फ़ल
आठवें भाव के गुलिक वाला जातक ठिगने कद का होता है। उसके बचपन में उसकी आंख में आघात होता है,अक्सर इस प्रकार के जातक हकलाने वाले भी होते है,अधिक खर्च करना और अपनी पत्नी या पति के स्वभाव से व्यथित रहना भी मिलता है। इस प्रकार के जातकों का धन अधिकतर मामलों में पुत्री धन ही बनता है,पुत्र संतान या तो होती नही है और अगर होती भी है तो परिवार से दूर चली जाती है,पुत्रियों की राजनीति से घर में विद्रोह पैदा होता है।
नवें भाव में गुलिक का फ़ल
नवे भाव के गुलिक वाला जातक भाग्य हीन होता है और वह अधिकतर अपने ही परिवार से हमेशा के लिये दूर हो जाता है,भाग्य और धर्म के मामलों मे वह जाना नही चाहता है और अगर जाता भी है तो वह उनके अन्दर कोई ना कोई दखल ही देता है।
दसवें भाव में गुलिक का फ़ल
जातक पापी अधर्मी और धार्मिक स्थानों का तिरस्कार करने वाला होता है,धर्म की ओट में वह कमाकर बेकार के बुरे कर्मों को करने में तथा ऐयासी में खर्च करने वाला होता है।
ग्यारहवें भाव में गुलिक का फ़ल
इस भाव के गुलिक का फ़ल जातक के लिये साहसी बनाने वाला होता है,और अधिकतर मामलों में वह न्याय वाले काम करता है।
बारहवें भाव में गुलिक का फ़ल
इस भाव के गुलिक वाला जातक परदेश में रहने वाला और मलिन स्थानों में निवास करने वाला था अपव्ययी होता है,अक्सर इस प्रकार के जातकों का निवास किसी शमशान या मुर्दा स्थान के आसपास होता है। #jyotishwithakshayg
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