Hanumaan Janmotsav - हनुमान जन्मोत्सव पर करें भयनाशक विभीषण द्वारा किए गए हनुमत्स्तोत्र
Hanumaan Janmotsav:- हनूमान् जन्मोत्सव पर करें भयनाशक, रोग, व्याधि, पीड़ा, राजभय से मुक्ति के लिए विभीषण द्वारा किए गए हनुमत्स्तोत्र का पाठ
इस स्तोत्र का प्रतिदिन तीन बार पाठ करने का विधान है, परन्तु दो बार भी कर लेना पर्याप्त है। इसे हनूमान् जयन्ती से आरम्भ करते हुए वर्ष पर्यन्त करना है। कुछ ही माहों में आप स्वयं के आत्मविश्वास में वृद्धि देखेंगे।
Hanumaan Janmotsav, recite Hanumatstotra performed by Bhayanashak Vibhishan |
तन्त्र ग्रन्थों में हनूमान् जी के कई मन्त्र एवं स्तोत्र विभीषण कृत हनुमत्स्तोत्र दिया गया है, जो सभी प्रकार के भयों का नाश करता है। यह स्तोत्र भय, रोग, व्याधि, पीड़ा, राजभय आदि से मुक्ति में सहायक है, तो वहीं ग्रहजनित पीड़ा भी दूर होती है। साथ ही सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। स्तोत्र की फलश्रुति में इनका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।। जी की साधनाओं में शुद्धता एवं पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा सम्भव हो सके, तो जमीन पर सोना चाहिए। हनूमान् जी को स्वयं के हाथ से निर्मित चूरमे का भोग लगाना चाहिए।
हनूमान् जन्मोत्सव (Hanumaan Janmotsav):-
हनूमान् जन्मोत्सव के दिन स्नान आदि से निवृत होकर श्रीराम और हनुमान् जी की पूजा-उपासना करनी चाहिए। तदुपरान्त प्रस्तुत हनुमत्स्तोत्र का पाठ निम्नलिखित विधि से करना चाहिए:
घर के पूजा स्थान पर अथवा किसी एकान्त कक्ष में एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर सिन्दूर या केसर मिश्रित अक्षत से अष्टदल कमल का निर्माण करना चाहिए और उस पर हनूमान् जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए। तदुपरान्त निम्नलिखित मन्त्र से हनूमान् जी का ध्यान करना चाहिए:
बालार्कायुत-तेजसं त्रिभुवन-प्रक्षोभकं सुन्दरं सुग्रीवादि समस्त - वानर- गणैः संसेव्य-पादाम्बुजम् ।
नादेनैव समस्त - राक्षस गणान् सन्त्रासयन्तं प्रभु, श्रीमद्-राम-पदाम्बुज- स्मृति- रतं ध्यायामि
वात्मजम्।।
अब निम्नलिखित मन्त्रों से हनूमान् जी की मानस पूजा करनी चाहिए:
ॐ लं पृथ्व्यात्मकं गन्धं समर्पयामि।
ॐ हं आकाश तत्त्वात्मकं पष्पं समर्पयामि।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं प्रापयामि।
ॐ रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं दर्शयामि।
ॐ वं जल - तत्त्वात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं समर्पयामि।
मानस पूजन के पश्चात् श्रद्धाभाव से निम्नलिखित हनुमत्स्तोत्र का पाठ करना चाहिए:
॥ विभीषण कृत हनुमत्स्तोत्र ॥
नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे ।
नमः श्रीरामभक्ताय श्यामास्याय च ते नमः ॥ १ ॥
आपको प्रणाम है। श्रीराम भक्त! आपको अभिवादन श्री हनुमान्! आपको नमस्कार है। मारुतनन्दन! है। आपके मुख का वर्ण श्याम है. आपको नमस्कार है।
नमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे।
लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे ॥ २ ॥
आप सुग्रीव के साथ (भगवान् श्रीराम की) मैत्री के संस्थापक और लंका को भस्म कर देने के अभिप्राय से खेल- ही खेल में महासागर को लाँघ जाने वाले हैं। आप वानर बीर को प्रणाम है।
सीताशोकविनाशाय राममुद्राधराय चा रावणान्तकुलच्छेदकारिणे ते नमो नमः ॥ ३ ॥
आप श्रीराम की मुद्रिका को धारण करने वाले, सीताजी के शोक के निवारक और रावण के कुल के संहारकर्ता हैं, आपको बारम्बार अभिवादन है।
मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नमः।
अशोकवनविध्वंसकारिणे भयहारिणे ॥ ४ ॥
आप अशोक वन को नष्ट-भ्रष्ट कर देने वाले और मेघनाद के यज्ञ के महार्णवशिलाबद्धसेतुबन्धाय ते नमः। विध्वंसकर्ता हैं, आप भयहारी को पुनः पुनः नमस्कार है।
वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिनेा
वनपाल शिरश्छेदलङ्काप्रासादभञ्जिने ॥ ५ ॥
ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाङ्गूलधारिणे।
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नमः ॥ ६ ॥
आप वायु के पुत्र, श्रेष्ठ वीर, आकाश के मध्य विचरण करने वाले और अशोक बन के रक्षकों का शिरच्छेदन करके लंका की अट्टालिकाओं को तोड़-फोड़ डालने वाले हैं। आपकी शरीर कान्ति प्रतप्त सुवर्ण के समान है। आपकी पूँछ लम्बी है और आप सुमित्रानन्दन लक्ष्मण के विजयप्रदाता हैं। आप श्रीरामदूत को प्रणाम है।
अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्मपाशनिवारिणे।
लक्ष्मणाङ्गमहाशक्तिघातक्षतविनाशिने॥ ७ ॥
रक्षोघ्नाय रिपुघ्नाय भूतघ्नाय च ते नमः।
ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नमः ॥ ८ ॥
आप अक्षकुमार के वधकर्ता, ब्रह्मपाश के निवारक, लक्ष्मणजी के शरीर में महाशक्ति के आघात से उत्पन्न हुए घाव के विनाशक, राक्षस, शत्रु एवं भूतों के संहारकर्ता और रीछ एवं वानरवीरों के समुदाय के लिए जीवनदाता हैं। आपको बारम्बार नमस्कार है।
परसैन्यवलघ्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते नमः ।
विषघ्नाय द्विषघ्नाय ज्वरघ्नाय च ते नमः ॥ ९ ॥
आप शस्त्रास्त्र के विनाशक तथा शत्रुओं के सैन्यबल का मर्दन करने वाले हैं। स्थावर-जंगम सम्बन्धी विष, राजा का भयंकर शस्त्र-भय, ग्रहों का भय, जल,
आपको नमस्कार है। विष, शत्रु और ज्वर के नाशक आपको प्रणाम है।
महाभयरिपुघ्नाय भक्तत्राणैककारिणे।
परप्रेरितमन्त्राणां यन्त्राणां स्तम्भकारिणे ॥ १० ॥
पयः पाषाणतरणकारणाय नमो नमः।
आप महान् भयंकर शत्रुओं के संहारक, भक्तों के एकमात्र रक्षक, दूसरों द्वारा प्रेरित मन्त्र-यन्त्रों को स्तम्भित करने वाले और समुद्र जल पर शिलाखण्डों के तैरने में कारणस्वरूप हैं। आपको पुनः-पुनः नमस्कार है।
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे ॥ ११ ॥
नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च।
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे ॥ १२ ॥
प्रतिग्रामस्थितायाथ रक्षोभूतवधार्थिने ।
करालशैलशखाय द्रुमशस्त्राय ते नमः ।। १३ ।।
आप बाल- सूर्यमण्डल के ग्रासकर्ता एवं भवसागर से तारने वाले हैं। आपका स्वरूप महान् भयंकर है। आप नख और दाँतों को आयुध रूप में धारण करते हैं तथा शत्रुओं की माया के विनाशक और श्रीराम की आज्ञा से लोगों के पालनकर्ता हैं, राक्षसों एवं भूतों का वध करना आपका प्रयोजन है, प्रत्येक ग्राम में आप मूर्त रूप में है, उन्हें हिन्दी अनुवाद का ही पाठ कर लेना पर्याप्त है। इस स्तोत्र का प्रतिदिन तीन
स्थित हैं, विशाल पर्वत और वृक्ष ही आपके शस्त्र हैं, आपको नमस्कार है।
बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय चा
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नमः ॥ १४ ॥
एकमात्र बाल-ब्रह्मचारी, रुद्र रूप में अवतरित और आकाशचारी हैं, आपका शरीर वज्र के समान कठोर है, आप सर्वस्वरूप को प्रणाम है।
कौपीनवाससे तुभ्यं रामभक्तिरताय चा
दक्षिणाशाभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने।। १५ ।।
कृत्याक्षतव्यथाघ्नाय सर्वक्लेशहराय चा स्वाम्याज्ञापार्थसंग्रामसंख्ये संजयधारिणे ॥ १६ ॥
भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने । किल्किलावुवुकोच्चारपोरशब्दकराय च ॥ १७ ॥
सर्पाग्निव्याधिसंस्तम्भकारिणे वनचारिणे। सदा वनफलाहारसंतृप्ताय विशेषतः ॥ १८ ॥
कौपीन ही आपका वस्त्र है, आप निरन्तर श्रीराम भक्ति में निरत रहते हैं, दक्षिण दिशा को प्रकाशित करने के लिये आप सूर्य के समान हैं, सैकड़ों चन्द्रोदय के समान आपके शरीर की कान्ति है, आप कृत्या द्वारा किए गए आघात की व्यथा के नाशक, सम्पूर्ण कष्टों के निवारक, स्वामी की आज्ञा से पृथा-पुत्र अर्जुन के संग्राम में मैत्रीभाव के संस्थापक, विजयशाली, भक्तों के अन्तिम दिव्य वाद-विवाद तथा संग्राम में विजयप्रदाता, 'किलकिला' एवं 'बुबुक' के उच्चारणपूर्वक भीषण शब्द करने वाले, सर्प, अग्नि और व्याधि के स्तम्भक, वनचारी, सदा जंगली फलों के आहार से विशेष रूप से संतुष्ट और महासागर पर शिलाखण्डों द्वारा सेतु के निर्माणकर्ता हैं, आपको नमस्कार है।
वादे विवादे संग्रामे भये घोरे महावने ॥ १९ ॥
सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्यः स्तोत्रपाठाद् भयं न हि।
इस स्तोत्र का पाठ करने से वाद-विवाद, संग्राम, घोर भय एवं महावन में सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक जन्तुओं तथा चोरों से भय नहीं प्राप्त होता।
दिव्ये भूतभये व्याधौ विषे स्थावरजङ्गमे॥ २० ॥
राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च।
जले सर्वे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे ॥ २१ ॥
पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्यः सर्वतो नरः ।
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठतः॥ २२ ॥
यदि मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करे, तो वह दैविक तथा भौतिक भय, व्याधि, स्थावर-जंगम-सम्बन्धी विष, राजा का भयंकर शस्त्रं-भय, ग्रहों का भय, जल, सर्पमहावृष्टि, दुर्भिक्ष तथा प्राण-संकट आदि सभी प्रकारके भयों से मुक्त हो जाता है। इस हनुमत्स्तोत्र के पाठ से उसे कहीं भी भय की प्राप्ति नहीं होती।
सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदम स्तवम्।
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥ २३ ॥
नित्य प्रति तीनों समय (प्रातः, मध्याह्न, संध्या) इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। ऐसा करने से सम्पूर्ण कामनाओं की प्राप्ति हो जाती है। इस विषय में अन्यथा विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
विभीषणकृतं स्तोत्रं तार्क्ष्यण समुदीरितम्।
ये पठिष्यन्ति भक्त्या वै सिद्धयस्तत्करे स्थिताः ॥ २४ ॥
इति श्रीसुदर्शनसंहितायां विभीषणगरुडसंवादे विभीषणकृतं हनुमत्स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
निष्कर्ष:-
विभीषण द्वारा किए गए इस स्तोत्र का गरुड़ ने सम्यक् प्रकार से पाठ किया था। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इसका पाठ करेंगे, समस्त सिद्धियाँ उनके करतलगत हो जाएँगी। यहाँ हिन्दी भावार्थ भी दिया गया है, जिससे स्तोत्र के अनुरूप भाव निर्मित हो सकें। इसके अतिरिक्त जिन साधकों को संस्कृत में पाठ करने का अभ्यास नहीं उनको हिंदी अनुवाद का ही पाठ कर लेना पर्याप्त है। इस स्तोत्र का प्रति दिन 3 बार पाठ करने का विधान है परन्तु 2 बार भी कर सकते है | इसे हनूमान् जयन्ती से आरम्भ करते हुए वर्ष पर्यन्त करना है। कुछ ही माहों में आप स्वयं के आत्मविश्वास में वृद्धि देखेंगे, तो वहीं विभिन्न प्रकार के भय और आशंकाओं से भी मुक्त हों सकेंगे। यह स्तोत्र ऐसे व्यक्ति को भी राहत प्रदान करता है, जो अनेक मुकदमों एवं शत्रुओं एवं मुकदमों से परेशान है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करना आवश्यक है। लाभ आप स्वयं अनुभव करेंगे। •
Akshay Jamdagni:
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