G-B7QRPMNW6J महाभारत में ऐसा कौनसा योद्धा था जो बहुत बलशाली होने के बावजूद भी महाभारत के युद्ध में शामिल न हुआ
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महाभारत में ऐसा कौनसा योद्धा था जो बहुत बलशाली होने के बावजूद भी महाभारत के युद्ध में शामिल न हुआ

Jyotish With AkshayG

Grandson of Bhim and son of Ghatotkach Danveer Barbarik
mahabharat mein aisa yoddha jo bahut balashali hone ke bavajood bhi mahabharat ke yuddh mein na tha

बर्बरीक : 

भीम पौत्र और घटोत्कच के पुत्र दानवीर बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने दान में उसका शीश मांग लिया था। उसकी इच्छा थी कि वह महाभारत का युद्ध देखे तो श्रीकृष्ण ने उसको वरदान देकर उसका शीश एक जगह रखवा दिया। जहां से उसने महाभारत का संपूर्ण युद्ध देखा। कहते हैं कि जब वे कौरव की सेना को देखते थे तो उधर तबाही मच जाती थी और जब वे पांडवों की सेना की ओर देखते थे तो उधर की सेना का संहार होने लगता था। ऐसे में उनका शीश दूर पहाड़ी पर स्थापित कर दिया गया था। युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी तनाव हुआ कि युद्ध में विजय का श्रेय किस को जाता है, इस पर कृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अत : उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है। इसे पर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि उन्हें तो युद्ध युद्धभूमि में चारों ओर सिर्फ श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र ही घूमता हुआ दिखायी दे रहा था, जो कि शत्रु सेना को काट रहा था, महाकाली दुर्गा कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं।

खाटू श्याम को लेकर क्या डर था श्रीकृष्ण को? 

महाभारत का युद्ध शुरू होने को था। देशभर के योद्धा या तो कौरवों के साथ थे या फिर पांडवों के। इसी बीच महाबली भीम के पौत्र बर्बरीक भी बढ़ रहे थे कुरुक्षेत्र की ओर। श्रीकृष्ण को जैसे ही पता चला कि बर्बरीक रणभूमि की तरफ आ रहे हैं, तो वह आशंका से घिर उठे। उन्हें डर था कि यह योद्धा कौरवों की सेना के साथ हो जाएगा। बर्बरीक का कौरवों की तरफ से लड़ना यानी पांडवों की हार।

बर्बरीक लड़ता तो पल में खत्म हो जाता महाभारत का युद्ध!

बेवजह भी नहीं था श्रीकृष्ण का डर। अपने पिता घटोत्कच से ज़्यादा मायावी और बलशाली थे बर्बरीक। कर्ण की तरह दानी। शक्ति स्वरूपों के अनन्य उपासक। इसी उपासना और गुरु विजय सिद्ध सेन की कृपा से उन्हें मिला था अतुलित बल, इंद्रियों को वश में रखने का वरदान और हमेशा साथ रहने वाले तीन अचूक बाण। ये कोई साधारण बाण ना थे। इन्हें जिस भी लक्ष्य पर चलाया जाता, उसका बेधा जाना तय था।

लेकिन, अपने दादा भीम का साथ छोड़कर बर्बरीक क्यों लड़ते कौरवों की ओर से? तो जवाब है उनके गुरु की सीख। गुरु ने कहा था कि युद्ध में हमेशा कमजोर का साथ देना।

बस इसी को लेकर चिंता थी भगवान कृष्ण को। बर्बरीक जब पांडवों के खेमे में पहुंचे, तो श्रीकृष्ण ने बातों ही बातों में उनसे अपने दादा के पक्ष में युद्ध करने के बारे में पूछ लिया। इस पर बर्बरीक ने जवाब दिया कि वह अपने गुरु को वचन दे चुके हैं कि हमेशा कमजोर के साथ ही रहेंगे। इस युद्ध में भी जो हारता दिखेगा, उसी के पाले में खड़े होकर वह युद्ध करने लगेंगे।

बर्बरीक के तीन बाणों के गुण:-

उन्होंने अपने तीन बाणों के गुण भी बताए। केवल दो बाण विशाल से विशाल सेना का खात्मा करने के लिए काफी थे। यह सुनना था कि पांडव खेमे में खलबली मच गई। उन्हें लगा कि अगर कौरव हारने लगे, तो बर्बरीक कौरवों की तरफ से युद्ध करने लगेंगे। श्रीकृष्ण को भी इस बात का भान था। उन्हें पता था कि इस धर्मयुद्ध में अधर्म की हार तय है यानी कौरव पराजित होंगे। लेकिन, जैसे ही बर्बरीक कौरवों को पराजित होता देखेंगे, तो अपने प्रण के मुताबिक उनकी ओर से युद्ध में उतर जाएंगे।

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वह अगर युद्ध ही न करें तो? इस पर बर्बरीक ने जवाब दिया कि ऐसा नहीं हो सकता। वह योद्धा हैं और युद्ध तो करेंगे ही। गुरु को दिए वचन को भी निभाएंगे। इतना कहते हुए वह बाहर चले गए।

श्रीकृष्ण का बर्बरीक की परीक्षा लेना :-

पांडव खेमे में इसके बाद मंत्रणा हुई। तय हुआ कि श्रीकृष्ण ही इस संकट से उबारने का हल तलाशें। श्रीकृष्ण अगले रोज ब्राह्मण वेश में बर्बरीक के पास पहुंचे। तब वह ध्यान में लीन थे। उनके बगल में तीन बाण रखे थे।

ब्राह्मण को देखकर बर्बरीक ध्यान मुद्रा से बाहर आए और चरणों में प्रणाम किया। ब्राह्मण ने पूछा, 'यहां पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे होने का क्या कारण है और तुम कौन हो?' बर्बरीक ने उन्हें अपना परिचय देते हुए बताया कि वह युद्ध करने आए हैं।

ब्राह्मण ने इस पर कहा, 'तुम्हारे पास तो केवल तीन बाण हैं। इनके सहारे युद्ध कैसे करोगे?'

इस पर बर्बरीक ने उन बाणों के अमोघ होने की पूरी कहानी सुनाई। ब्राह्मण ने पीपल के पेड़ की तरफ उंगली दिखाते हुए कहा, 'मान लो, यह पीपल का पेड़ एक विशाल सेना है और इसके सभी पत्ते एक-एक सैनिक। कैसे तुम इन बाणों से उन्हें बेधोगे?'

इस पर बर्बरीक जैसे ही अपने बाणों का चमत्कार दिखाने के लिए धनुष उठाने को मुड़े, श्रीकृष्ण ने पीपल का एक पत्ता अपने पैर के नीचे छुपा लिया।

बर्बरीक ने अपने धनुष पर एक बाण चढ़ाया और पीपल के पेड़ की तरफ छोड़ दिया। सभी पत्तों पर निशान लग गए। इसके बाद जैसे ही उन्होंने दूसरा बाण छोड़ा, सभी पत्ते ज़मीन पर जा गिरे और तीर ब्राह्मण के पैर में जाकर लग गया।

ब्राह्मण के पैर से खून रिसता देखकर बर्बरीक हैरान हो गए। उन्हें अंदाज़ा हो गया कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं अन्यथा इनकी मौत हो गई होती।

बर्बरीक यह सब सोच ही रहे थे कि ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण ने कहा, 'तुम्हारे बाण अचूक और चमत्कृत करने वाले हैं। महाबली, क्या इस ब्राह्मण को कुछ दान नहीं दोगे?'

बर्बरीक ने कहा, 'ज़रूर दूंगा, लेकिन आप मुझे अपने वास्तविक रूप में दर्शन दें।'

श्रीकृष्ण ने जैसे ही अपना रूप दिखाया, बर्बरीक उनके पैरों पर गिर पड़े और बोले, 'भगवन्, जो मांगना हो मांगें।'

श्रीकृष्ण का बर्बरीक शीश मांगना:-

श्रीकृष्ण ने उनका शीश मांग लिया। इस पर बर्बरीक ने कहा, 'लेकिन भगवान, मैं महाभारत का युद्ध देखना चाहता हूं। मैंने सुना है कि इतना बड़ा युद्ध न तो कभी लड़ा गया और न ही लड़ा जाएगा। यह अवसर मुझसे मत छीनिए।' इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि धड़ से अलग होने के बाद भी शीश जीवित रहेगा। आंखें सब देख सकेंगी और कान सब सुन सकेंगे। यह सुनते ही बर्बरीक की इच्छा पूरी हो गई और उन्होंने तलवार से अपना शीश काटकर भगवान श्रीकृष्ण को दे दिया। मधुसूदन ने बर्बरीक का कटा शीश कुरुक्षेत्र के पास की ऊंची पहाड़ी पर रख दिया, जहां से उसने महाभारत का पूरा युद्ध देखा।

श्रीकृष्ण को बर्बरीक अपना मार्गदर्शक मानते थे। वजह थी, जन्म के बाद जब घटोत्कच उन्हें लेकर द्वारका पहुंचे, तो श्रीकृष्ण ने ही उन्हें शक्ति स्वरूपों की उपासना के लिए महीसागर जाने को कहा था। बर्बरीक ने वहीं पर शक्ति स्वरूपों की उपासना की और गुरु विजय सिद्ध सेन की सिद्धि पूरी होने तक उनकी रक्षा की थी। इसी के प्रतिफल में वह अजेय बन सके थे।

महाभारत के युद्ध में जब पांडवों को विजय मिली, तो उनमें श्रेय लेने की होड़ मच गई। युधिष्ठिर कृतज्ञ हो रहे थे वासुदेव के प्रति। वहीं, भीम को लग रहा था कि उन्होंने ही धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारा है और इस वजह से युद्ध का परिणाम उनके पक्ष में आया। दूसरी ओर, अर्जुन भी श्रीकृष्ण के प्रति ही कृतज्ञ रहे।

आखिरकार तय हुआ कि बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा है, तो उन्हीं के पास चला जाए। बर्बरीक ने उनसे कहा, 'मैंने तो शत्रुओं के साथ केवल एक पुरुष को युद्ध करते देखा है। उनके बाईं ओर पांच मुख थे और 10 हाथ, जिनमें त्रिशूल आदि वह धारण किए थे। दाहिनी ओर एक मुख और चार भुजाएं थीं, जिनमें चक्र आदि अस्त्र-शस्त्र थे। बाईं ओर उनके जटाएं थीं और ललाट पर चंद्रमा सुशोभित हो रहा था। अंग में भस्म लगी थी। दाहिनी ओर मस्तक पर मुकुट था। अंगों पर चंदन लगा था और कंठ में सुशोभित थी कौस्तुभ मणि। उस पुरुष को छोड़कर कौरव सेना का नाश करने वाले दूसरे किसी पुरुष को मैंने नहीं देखा।'

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलयुग में उनके नाम श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान देना;-

श्रीकृष्ण ने इसके बाद बर्बरीक को कलयुग में उनके नाम यानी श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दिया और उनके शीश को रूपवती नदी में प्रवाहित कर दिया। यही बर्बरीक बने खाटू श्याम।

माना जाता है कि कलयुग आने के कई साल बाद बर्बरीक का शीश एक नदी में पाया गया, जिसे राजस्थान के सीकर ज़िले में श्याम कुंड के पास दफना दिया गया। जिस जगह पर इसे दफनाया गया, उस स्थान को खाटू नाम से जाना जाने लगा। कहते हैं कि जहां शीश दफनाया गया था, उस जगह जब गाएं जातीं, तो उनके थन से दूध रिसने लगता। जब स्थानीय ग्रामीणों ने उस जगह को खोदकर देखा, तो उन्हें एक सिर मिला।

ग्रामीणों ने सिर के बारे में पता लगाने के लिए उसे गांव के एक विद्वान ब्राह्मण को सौंप दिया। इसी बीच उस स्थान के राजा रूप सिंह चौहान को स्वप्न में खाटू श्याम ने दर्शन दिए और जहां उनका सिर मिला था, वहां एक मंदिर बनाने की बात कही। राजा ने आदेश का पालन किया। मंदिर का निर्माण कराया और फाल्गुन शुक्ल एकादशी को खाटू श्याम की प्रतिमा स्थापित करवाई। तभी से यहां फाल्गुन में 12 दिन का मेला लगता है। चूंकि जहां सिर मिला, उस जगह को खाटू नाम से जाना जाता था, इसलिए बर्बरीक को खाटू श्याम कहा जाने लगा।

इस प्राचीन मंदिर पर आक्रांताओं ने कई बार हमला बोला, नुकसान पहुंचाया। बताते हैं कि सन 1720 में राजा अभय सिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।

महाभारत में किसने किया हिडिंबा के साथ अन्याय?

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भीष्म ने चाहा दुर्योधन का वध कर दें

कर्ण की प्रतिज्ञा भीष्म भी तोड़ न पाए

बर्बरीक और खाटू श्याम के अलावा उन्हें मोरवी नंदन, बाण धारी, शीश दानी, कलयुग अवतारी, लखदातार, मोर्चरी धारक जैसे नामों से भी जाना जाता है। खाटू श्याम के मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है। मान्यता है कि श्रद्धालुओं की सेवा से सारे मनोरथ पूरे होते हैं। मेले के दौरान निकलने वाली निशान यात्रा भी खूब प्रसिद्ध है। श्रद्धालु खाटू श्याम का पीला विशाल ध्वज और नारियल लेकर यात्रा पर निकलते हैं। निशान यात्रा में वे श्रद्धालु शामिल होते हैं, जो खाटू श्याम से कोई मनोकामना पूरी होने की मन्नत लेकर आते हैं।

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