षडबल से ग्रहों के छ: प्रकार के बल द्वारा कुंडली में ग्रहों का बल जानने की विधि और लाभ
षडबल और विम्शोपक बल से ग्रहों के छ: प्रकार के बल द्वारा कुंडली में ग्रहों का बल जानने की विधि और लाभ |
|| षडबल - ग्रहों का बलाबल और उनकी अवस्थाएं ||
ग्रहों के बल का मापक षड्बल :- षडबल ज्योतिष का वह भाग है, जो किसी ग्रह की 6 प्रकार की शक्तियों को व्यक्त करता है। एक ग्रह अपनी स्थिति, दूसरे ग्रहों कि दृष्टि, दिशा, समय, गति आदि के द्वारा बल प्राप्त करता है। षडबल कि गणना में राहू- केतु के अतिरिक्त अन्य सात ग्रहों की शक्तियों का आकलन किया जाता है। षडबल में अधिक अंक प्राप्त करने वाला ग्रह बली होकर अपनी दशा- अन्तर्दशा में अपने पूरे फल देता है। इसके विपरीत षडबल में कमजोर ग्रह अपने पूरे फल देने में असमर्थ होता है।
षडबल में ग्रहों के छ: प्रकार के बल निकाले जाते हैं।
[1] स्थान बल- स्थानीय बल /शक्ति देता है।
यह वह बल है जो किसी ग्रह को जन्म कुंडली मे एक विशेष स्तिथि प्राप्त होने पर मिलता है। ग्रह को स्थान बल तब प्राप्त होता जब वह अपनी उच्च राशि, मूलत्रिकोण, स्वराशि, या मित्र राशि मे स्तिथ हो या ग्रह षडवर्ग में अपनी ही राशि मे हो।
[2] दिगबल - दिशा बल / शक्ति बताता है।
गुरु और बुध को दिग्बल प्राप्त होता है जब वे लग्न में स्तिथ हो।
सूर्य और मंगल को दिग्बल प्राप्त होता है जब वो दसवे भाव मे हो।
शनि को दिग्बल प्राप्त होता है जब वो सप्तम भाव मे हो।
चंद्र और शुक्र को दिग्बल प्राप्त होता है जब वो सुख भाव मे हो।
[3] काल बल - समय की शक्ति का निर्धारण करता है।
चंद्र मंगल और शनि रात्रि बलि है अर्थात जब जन्म रात्रि का हो।
सूर्य, शुक्र और गुरु दिन बलि है।
बुध दिन औऱ रात दोनों प्रहरों में बलि है।
पापी ग्रह कृष्ण पक्ष में बलवान होते है और शुभ ग्रह शुक्ल पक्ष में बलवान होते है।
[4] चेष्टा बल - गतिशील बल है।
सूर्य और चंद्रमा को चेष्टा बल प्राप्त होता है जब सूर्य मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, या मिथुन में हो अर्थात उत्तरायण में हो।
मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि को चेष्टाबल तब प्राप्त होता है जब वे वक्री होते होते है ।
[5] नैसर्गिक बल - प्राकृ्तिक बल प्रदान करता है।
सूर्य, चंद्र, शुक्र, गुरु, बुध, मंगल और शनि अपने क्रम अनुसार बलि है।
सूर्य सबसे अधिक बलि है, और शनि सबसे कम बलि है।
[6] दृष्टि बल - दृष्टि बल की व्याख्या करता है।
पाप ग्रह की दृष्टि में ग्रह का दृग बल कम हो जाता है शुभ ग्रह की दृष्टि से ये बल बढ़ता है।
षडबल और विम्शोपक बल से ग्रहों के छ: प्रकार के बल द्वारा कुंडली में ग्रहों का बल जानने की विधि और लाभ |
षडबल निकालने के लाभ :-
1. षडबल के आधार पर घटनाओं का फलित करने से भविष्यवाणियों में सटिकता और दृढता आती है। तथा इससे त्रुटि होने कि संभावनाओं में भी कमी होती है।
2. ग्रहों के बल का आकंलन करने के बाद यह सरलता से निश्चित किया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति की कुण्डली का विश्लेषण करने के लिते लग्न, चन्द्र, सूर्य तीनों में से किसे आधार बनाया जायें. फलित में इन तीनों में से जो बली हो, उसे ही फलित के लिये प्रयोग करने के विषय में मान्यता है।
3. पिण्डायु या अंशायु विधि से आयु की गणना करना सरल हो जाता है। क्योंकि इन विधियों में आयु गणना करने के लिये जो आंकडे चाहिये होते हैं। वे उपलब्ध हो जाते हैं।
4. महादशा और अन्तर्दशा के आधार पर फलित करना सरल हो जाता है। क्योंकि जो ग्रह षडबल में बली हों, वह दशा - अन्तर्दशा में अवश्य फल देता है। ये फल शुभ या अशुभ हो सकते हैं।
विम्शोपक बल :-
विम्शोपक बल कुंडली सामने आते ही सबसे पहले ग्रहों के बलाबल का विचार होता है| षड्बल उनमे प्रमुख है, एक और तरीका जिस से ग्रह के बल को ज्ञात किया जाता है उसको कहते है- विम्शोपक बल. विन्शोपक बल में जन्म कुंडली, होरा कुंडली, द्रेश्कांड, नवांश, द्वादंश और त्रिशांश कुंडली का प्रयोग होता है. वर्ग कुण्डलियाँ जीवन के विभिन्न क्षेत्रो के सूक्ष्म विश्लेषण में काम आती है| विन्शोपक बल, ग्रह की वर्ग कुंडली में राशि गत स्थिति पर निर्भर करता है| विन्शोपक बल में ग्रह को 20 में से अंक दिए जाते है. यदि अंक अधिक तो उस ग्रह की दशा अच्छी, यदि विन्शोपक बल कम तो दशा चुनौतीपूर्ण. इस बल के बारे में अपने विचार रख रहे है|
विम्शोपक बल :-
कुंडली सामने आते ही सबसे पहले ग्रहों के बलाबल का विचार होता है| षड्बल उनमे प्रमुख है, इस विडियो में एक और तरीका जिस से ग्रह के बल को ज्ञात किया जाता है उसका जिक्र है| उसे कहते है- विम्शोपक बल. विन्शोपक बल में 1.जन्म कुंडली, 2.होरा कुंडली, 3.द्रेश्कांड, 4.नवांश, 5.द्वादंश और 6.त्रिशांश कुंडली का प्रयोग होता है.
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