Rishi Panchami : ऋषि पंचमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को आती है व्रत - कथा
Rishi Panchami : ऋषि पंचमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को आती है व्रत - कथा |
॥ भविष्योत्तर पुराण की ऋषिपंचमी कथा ॥
ऋषि पंचमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. ऋषि पंचमी पर सप्तऋषियों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. ऋषि पंचमी पर उपवास रखने से पापों से मुक्ति है. ऋषि पंचमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन अनजाने में हुई गलतियों से प्रायश्चित के लिए उपवास किया जाता है. ऋषि पंचमी पर पुरुष और महिलाएं सप्त ऋषियों की पूजा करती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. इन सप्त ऋषियों के नाम कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ है.
ऋषि पंचमी पर सप्तऋषियों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी तिथि महिलाओं के लिए बेहद अहम मानी जाती है, जिसे ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) कहा जाता है. इस दिन सप्तऋषियों के पूजन के साथ कुछ समाजों में रक्षाबंधन का पर्व मनाने की परंपरा है. खासतौर पर महिलायें इस दिन उपवास भी करती है. जो जीवन में सारे सुख- वैभव व अंत समय में मुक्ति देने वाला माना जाता है. इसे लेकर भविष्य पुराण में एक कथा भी है, जो महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़ी है.
युधिष्ठिर ने प्रश्न किया हे देवेश! मैंने आपके श्रीमुख से अनेकों व्रतों को श्रवण किया है। अब आप कृपा करके पापों को नष्ट करने वाला कोई उत्तम व्रत सुनावें। राजा के ‘इन वचनों को सुनकर श्री कृष्ण जी बोले- हे राजेन्द्र !
अब मैं तुमको ऋषि पंचमी का उत्तम व्रत सुनाता हूँ, जिसको धारण करने से स्त्री समस्त पापों से छुटकारा प्राप्त कर लेती है। हे नृपोत्तम, पूर्व समय में वृत्रासुर का वध करने के कारण इन्द्र के उस पाप को चार स्थानों पर बांट दिया।
पहला अग्नि की ज्वाला में, दूसरा नदियों के बरसाती जल में, तीसरा पर्वतों में और चौथा स्त्री के रज में उस रजस्वला धर्म में जाने अनजाने उससे जो भी पाप हो जाते हैं उनकी शुद्धि के लिए ऋषि पंचमी व्रत करना उत्तम है।
उनके राज्य में समस्त वेदों का ज्ञाता समस्त जीवों का उपकार वाला सुमित्र नामक एक कृषक ब्राह्मण निवास करता था। उनकी स्त्री जयश्री पतिव्रता थी। ब्राह्मण के अनेक नौकर-चाकर भी थे। एक समय वर्षाकाल में जब वह साध्वी खेती के कामों लगी हुई थी तब वह रजस्वला भी हो गई।
ऋषि पंचमी की कथा
इसी विषय में एक प्राचीन कथा का वर्णन करता हूँ। सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नाम के ऋषियों के समान राजा थे. वे प्रजा का पुत्रवत पालन करते थे। उनके आचरण ऋषि के समान थे।जिनके राज में एक किसान सुमित्र व उसकी पत्नी जयश्री धर्म परायण जीवन जी रहे थे. जो वर्षा ऋतु में एक समय खेती के काम में जुटे थे. इसी दौरान जयश्री रजस्वला हो गई, पर इसका पता लगने पर भी उसने काम करना जारी रखा. धर्म-शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है।
आयु पूरी होने के बाद जब दोनों पति- पत्नी की मौत हुई तो जयश्री को कुतिया और सुमित्र को रजस्वला के सम्पर्क में रहने से बैल की योनि मिली. चूंकि ऋतु दोष के अलावा दोनों का कोई दोष नहीं था, ऐसे मे उन्हें अपना पूर्व जन्म याद रहा. जिसके चलते कुतिया व बैल की योनियों में भी वे अपने घर में बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे. सुचित्र भी धर्मात्मा था. जिसने एक बार अपने पिता के श्राद्ध पर ब्राम्हाणों को भोज पर आमंत्रित किया.
कुतिया को मारना शुरू किया
इसी दौरान जब उसकी स्त्री किसी काम से रसोई से बाहर गई तो पीछे से एक सांप ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया, जिसे कुतिया ने देख लिया. ऐसे में पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उसने भी उस बर्तन में मुंह डाल दिया.
जिसे देख सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती ने गुस्से में चूल्हे से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारना शुरू कर दिया और उसके लिए हमेशा रखने वाला जूठन भी उसे ना देकर बाहर फेंक दिया. इसके बाद नए सिरे से खाना बनाकर ब्राह्मणों को खिलाया. इसके बाद जब रात को भूख लगी तो कुतिया बिलखती हुई बैल बने पति के पास गई, जहां उसने दिन का सारा वृतांत बता दिया.
ऋषि पंचमी के व्रत का उपाय
तब बैल बना पति बोला कि हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनि में हूं. बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी भी कमर टूट गई है. खेत में दिनभर हल में जुता रहने पर उसे भी पुत्र ने भोजन नहीं दिया. उसे मारा भी. इस तरह उसने मेरा श्राद्ध भी निष्फल कर दिया. दोनों ये बात कर रहे थे, तभी उनके पुत्र ने भी वहां पहुंचकर उनकी बात सुन ली, जिसके बाद पश्चाताप करते हुए उसने उन दोनों को भरपेट भोजन कराया और उनके दुख से दुखी होकर वन में चला गया. जहां जाकर उसने ऋषि- मुनियों से अपने माता व पिता की कुतिया व बैल योनि से छुटकारे की बात पूछी. तब सर्वतमा ऋषि ने पत्नी सहित ऋषि पंचमी के व्रत को उसका उपाय बताया.
उन्होंने कहा कि भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान कर नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना. इससे दोनों की मुक्ति हो जाएगी. विधि पूर्वक उसने ऋषि पंचमी का व्रत किया, जिसके पुण्य से उसके माता-पिता दोनों को पशु योनि से मुक्ति मिल गई. मान्यता है कि जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह सारे भौतिक सुखों को प्राप्त कर अंत में मुक्ति को प्राप्त करती है.
श्री कृष्णजी बोले–
हे राजन! महर्षि सर्वतपा के इन वचनों को श्रवण करके सुमित अपने घर लौट आया और ऋषिपंचमी का दिन आने पर उसने अपनी स्त्री सहित उस व्रत को धारण किया और उस के पुण्य अपने माता पिता को दे दिया। व्रत के प्रभाव से उसके माता-पिता दोनों ही पशु को योनियों से मुक्त हो गए और स्वर्ग को चले गए। जो स्त्री इस व्रत को धारण करती है वह समस्त सुखों को पाती है।
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